मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

सोशल मीडिया और धारा ६६-ए

                                                     कभी लोगों को मानहानि से बचाने के लिए सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में सोचते हुए सरकार द्वारा जिस तरह से आईटी एक्ट में धारा ६६-ए जोड़ने का प्रावधान किया था आज उसके अपने निजी हितों के लिए दुरूपयोग दिखाई देने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसे शर्मनाक बताया है. इस मामले पर अपनी राय व्यक्त करते हुए कोर्ट ने जिस हद तक नाराज़गी दिखाई उससे यही पता चलता है कि देश में किसी भी कानून का किस तरह से स्पष्ट उल्लंघन किया जा सकता है पर अब कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद सरकार को संभवतः इस धारा में व्यापक स्पष्टता लाते हुए संशोधन करने की आवश्यकता महसूस होने लगे. देश में सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव और उसके साथ ही उसमें व्यक्तिगत आक्षेप और टिप्पणियों को रोकने के लिए ही सरकार ने इस धारा की व्यवस्था की थी पर इससे यह बात अधिक स्पष्ट रूप से सबके सामने आती है कि संसद में किस तरह से काम काज होता है और नेता महत्वपूर्ण कानूनों के निर्माण में भी किस तरह से रूचि नहीं दिखाते हैं.
                                          आज कोर्ट को यदि यह कहना पड़ रहा है तो इसके यही मायने हैं कि सरकार और संसद ने बिना कुछ सोचे समझे ही इस तरह के कानून को बनाये जाने के लिए पारित करा दिया जिसका व्यापक दुरूपयोग किये जाने की सम्भावना है. पुलिस को इस धारा में गिरफ़्तारी करने के अधिकार और तीन साल की सजा का प्रावधान किया जाना कहीं तक तो सही है पर किन परिस्थितियों में यह गिरफ़्तारी की जा सकती है इसके लिए स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं होने से इसके दुरूपयोग के मामले सामने आने लगे हैं. सरकार की इस दलील पर कि इस तरह के मामले नगण्य हैं कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि यदि कानून के इस तरह से दुरूपयोग का कोई एक भी मामला है तो वह शर्मनाक है इस तरह की प्रतिकूल टिप्पणी के बाद अब कानून मंत्रालय को एक बार फिर से इस मसले पर मंथन कर उन बिन्दुओं को स्पष्ट कर उन्हें संसद से पारित करवाना होगा जिससे कोर्ट में सरकार कुछ कहने की स्थिति में आ सके.
                                       देश में पुलिस के दुरूपयोग की अनगिनत घटनाएँ रोज़ ही सामने आती रहती हैं और सरकार के नीचे काम करने के कारण पुलिस किसी भी परिस्थिति में खुद स्वतंत्र निर्णय नहीं ले पाती है और ऐसे मामले जिनमें गिरफ़्तारी के लिए स्पष्ट प्रावधानों की कमी है वहां पर सरकार और पुलिस को मनमानी करने की पूरी छूट मिल जाती है. इस परिस्थिति में केवल कोर्ट के माध्यम से ही आम लोगों को रहत मिल सकती है फिर भी इस तरह के दमनकारी प्रावधानों को तत्काल ही समाप्त किये जाने की आवश्यकता है जिससे किसी को भी इस कानून के दुरूपयोग के माध्यम से फंसाया न जा सके. आज भी किसी के पास ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके माध्यम से वह पुलिस के सामने अपनी बात को कह सके तथा पुलिस भी सरकार या उसके नेता के दबाव से बाहर रहकर काम कर सके ? सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद अब पुलिस पर भी इस बात का दबाव तो बन ही जायेगा कि वह मामले को गंभीरता से सोचने के बाद इस धारा को लगाये क्योंकि अब पीड़ित व्यक्ति के वकील कोर्ट की इस दलील के साथ आसानी से केस को समाप्त करवाने की तरफ भी जा सकते हैं. 
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